हर साल 1 मई को पूरी दुनिया में मई दिवस यानी International Labour Day मनाया जाता है। यह दिन मेहनतकश मजदूरों और श्रमिकों के अधिकारों, सम्मान और योगदान को समर्पित होता है। भारत समेत दुनिया के कई देशों में यह दिन एक राष्ट्रीय अवकाश के रूप में मनाया जाता है।
मई दिवस का इतिहास
मई दिवस की शुरुआत 1886 में अमेरिका के शिकागो शहर से हुई थी, जब हज़ारों मज़दूरों ने 8 घंटे काम, 8 घंटे आराम और 8 घंटे व्यक्तिगत समय की मांग को लेकर आंदोलन शुरू किया। इस आंदोलन के दौरान हुई हिंसा, जिसे हेमार्केट नरसंहार कहा जाता है, ने मज़दूर आंदोलन को वैश्विक पहचान दी।
![]() |
This 1886 engraving was the most widely reproduced image of the Haymarket massacre. |
भारत में मई दिवस पहली बार 1923 में चेन्नई (तब मद्रास) में कामरेड सिंगारवेलु चेट्टियार द्वारा मनाया गया था। उन्होंने भारत में पहली बार मजदूरों के अधिकारों की खुलकर वकालत की और मजदूर दिवस की नींव रखी।
भारत में श्रमिकों की वर्तमान स्थिति
आज भारत में लगभग 90% मज़दूर असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं। इनमें किसान, दिहाड़ी मज़दूर, सफाई कर्मचारी, घरेलू कामगार, रिक्शा चालक आदि शामिल हैं।
कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों की हालत ने देश को झकझोर कर रख दिया। यह साफ़ हो गया कि अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहलाने वाले ये श्रमिक आज भी सबसे उपेक्षित तबके में आते हैं।
मई दिवस का महत्व आज के दौर में
आज जब हम डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, और विकास की ऊंचाइयों की बात करते हैं, तब यह जरूरी हो जाता है कि हम मजदूरों के सामाजिक और आर्थिक अधिकारों की भी उतनी ही बात करें।
मई दिवस हमें याद दिलाता है कि प्रगति की हर इमारत उन हाथों की देन है, जिन्होंने ईंट जोड़ी, पसीना बहाया, और बदले में सम्मान तक नहीं मांगा।
मई दिवस सिर्फ इतिहास नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी है। हमें चाहिए कि हम श्रमिकों के लिए नीति, सुविधा और सम्मान का एक ऐसा ढांचा बनाएं, जहां वे सिर्फ "कामगार" न रहें — बल्कि सम्मानित नागरिक भी बन सकें।