अमेरिका से प्रत्यर्पण के बाद भारत में कदम
64 वर्षीय तहव्वुर हुसैन राणा पाकिस्तानी मूल का कनाडाई नागरिक है. वह पिछले कई वर्षों से अमेरिका की जेल में था और भारत की ओर से किए गए प्रत्यर्पण अनुरोध को अमेरिका ने लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद मंजूरी दी. यह भारत की कूटनीतिक दृढ़ता और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद के खिलाफ बनी एकजुटता का परिणाम है कि इतने वर्षों बाद भी न्याय की प्रक्रिया रुकी नहीं, बल्कि आज निर्णायक मोड़ पर है.
एनआईए की पेशी और आरोप
तहव्वुर राणा को जैसे ही भारत लाया गया, उसे तुरंत राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की टीम ने अपनी हिरासत में ले लिया और उसे दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट में पेश किया गया. NIA ने कोर्ट को बताया कि आरोपी नंबर 1 डेविड कोलमैन हेडली ने मुंबई हमलों की साजिश को अंतिम रूप देने से पहले तहव्वुर राणा से विस्तार से चर्चा की थी. यह चर्चा न केवल आमने-सामने, बल्कि इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से भी हुई.
NIA के अनुसार, हेडली ने राणा को एक महत्वपूर्ण ईमेल भेजा था, जिसमें पूरे आतंकी ऑपरेशन के लिए आवश्यक संसाधनों, सामग्रियों और पैसों का ब्योरा दिया गया था. यही नहीं, इस ईमेल में हेडली ने स्पष्ट रूप से बताया था कि इस साजिश में पाकिस्तानी आतंकी सरगना इलियास कश्मीरी और अब्दुर रहमान की भी संलिप्तता है.
कोर्ट में दलीलें और बचाव पक्ष
तहव्वुर राणा की ओर से दिल्ली लीगल सर्विसेज के एडवोकेट पीयूष सचदेवा ने कोर्ट में बचाव पक्ष की ओर से दलीलें पेश कीं. उनका कहना था कि राणा को इस मामले में झूठा फंसाया जा रहा है और उसके खिलाफ पेश किए गए सबूत संदिग्ध हैं. हालांकि, NIA ने कोर्ट को यह विश्वास दिलाने की कोशिश की कि राणा की भूमिका मुंबई हमलों में निर्णायक थी और उसकी रिमांड बेहद जरूरी है ताकि उससे और अहम जानकारी प्राप्त की जा सके.
कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फिलहाल फैसला सुरक्षित रख लिया और बहस के बाद 18 दिनों की NIA रिमांड पर भेज दिया है.
पहली तस्वीर आई सामने
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एनआईए की गिरफ्त में तहव्वुर राणा |
तहव्वुर राणा की भारत में गिरफ्तारी के बाद उसकी पहली तस्वीर सामने आई है. इस तस्वीर को खुद NIA ने जारी किया है, जिसमें राणा सफेद दाढ़ी, भूरे रंग का लबादा और काले चश्मे में दिखाई दे रहा है. तस्वीर में NIA के अफसर उसके दोनों ओर खड़े हैं और उसका हाथ पकड़े हुए हैं. यह तस्वीर सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गई है और लोगों में गुस्से और उम्मीद दोनों का माहौल बना हुआ है.
26/11 हमले की यादें फिर ताजा
26 नवंबर 2008 की रात को मुंबई की सड़कों पर जो भयावह मंजर था, वह भारतीय इतिहास का सबसे काला अध्याय बन गया. पाकिस्तान से समुद्री मार्ग से आए 10 आतंकियों ने मुंबई के ताज होटल, ओबेरॉय ट्राइडेंट, नरीमन हाउस, छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (CST) रेलवे स्टेशन और कैफे लियोपोल्ड जैसे स्थानों पर बर्बर हमले किए थे.
26 नवंबर 2008 की रात को मुंबई की सड़कों पर जो भयावह मंजर था, वह भारतीय इतिहास का सबसे काला अध्याय बन गया. पाकिस्तान से समुद्री मार्ग से आए 10 आतंकियों ने मुंबई के ताज होटल, ओबेरॉय ट्राइडेंट, नरीमन हाउस, छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (CST) रेलवे स्टेशन और कैफे लियोपोल्ड जैसे स्थानों पर बर्बर हमले किए थे.
करीब 60 घंटे तक चले इस आतंकी हमले में 175 लोग मारे गए और 300 से अधिक लोग घायल हुए. मारे गए लोगों में आम नागरिक, सुरक्षाकर्मी, एनएसजी कमांडो और विदेशी नागरिक भी शामिल थे. इस हमले ने भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया को झकझोर दिया था.
डेविड हेडली और राणा की भूमिका
मुंबई हमले की जांच में जब NIA और अमेरिकी जांच एजेंसियां जुटीं, तब सामने आया कि डेविड कोलमैन हेडली ने हमले की योजना बनाने और उसे जमीन पर उतारने में अहम भूमिका निभाई थी. हेडली ने मुंबई में कई बार यात्राएं कीं और टारगेट्स की रेकी की. उसके लिए लॉजिस्टिक और कागजी सहायता का काम तहव्वुर राणा ने किया.
राणा की कंपनी "इमिग्रेशन लॉ सेंटर" के जरिए हेडली ने भारत आने-जाने के लिए जरूरी दस्तावेज जुटाए और खुद को अमेरिकी नागरिक बताकर भारतीय अधिकारियों को धोखा दिया. राणा न केवल हेडली का सहयोगी था, बल्कि उसने आतंकी साजिश की तैयारियों में भी प्रत्यक्ष सहयोग किया.
पाकिस्तान की भूमिका और वैश्विक दबाव
मुंबई हमलों की जांच में यह बात खुलकर सामने आई कि पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा इस हमले के पीछे था. हाफिज सईद, जकीउर रहमान लखवी और अन्य आतंकियों की भूमिका के बावजूद पाकिस्तान की सरकार लगातार इन आरोपों से इनकार करती रही. भारत ने लगातार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस मुद्दे को उठाया और पाकिस्तान पर दबाव बनाने का काम किया.
अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और कई अन्य देशों ने भी इस हमले की कड़ी निंदा की और आतंक के खिलाफ एकजुटता दिखाई. राणा को भारत प्रत्यर्पित किया जाना इस बात का प्रतीक है कि अब दुनिया आतंकवाद को लेकर गंभीर है और भारत की न्यायिक मांगों को सम्मान दिया जा रहा है.
भारत की कूटनीतिक और न्यायिक जीत
तहव्वुर राणा की गिरफ्तारी और भारत लाया जाना केवल कानूनी प्रक्रिया नहीं, बल्कि भारत की एक बड़ी कूटनीतिक जीत भी है. इससे यह स्पष्ट संकेत गया है कि भारत अपने नागरिकों पर हुए हमले को कभी नहीं भूलता और न्याय के लिए अंतिम सीमा तक लड़ने को तैयार है.
यह घटना भारत के सुरक्षा ढांचे, खुफिया तंत्र और न्याय प्रणाली की ताकत को भी दर्शाती है. देशवासियों को यह उम्मीद जगी है कि अब जल्द ही 26/11 के सभी दोषियों को न्याय के कठघरे में लाया जाएगा और पीड़ितों को इंसाफ मिलेगा.